हरितालिका तीज व्रत की कथा ( story of haritalika teej vrat )
हरितालिका तीज व्रत कब मनाया जाता है
हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मानाने की परंपरा है. आमतौर पर ये तिथियां बरसाती महीनो में जुलाई से लेकर सितम्बर तक हो सकती है.
हरितालिका तीज व्रत की कहानी
माता गौरा ने सती के बाद हिमालय के घर में पार्वती माता के रूप में जन्म लिया था और बचपन के दिनों से ही पार्वती शिवजी को वर के रूप में देखना चाहती थी. इसीलिए पारवती माता ने कठोर तप किया। कड़कड़ाती ठण्ड में पानी में , गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर, बारिश में जल में खड़े रहकर कठोर परिश्रम से तपस्या की. निराहार पत्तोंको खाकर बारह साल तक व्रत किया। उनकी इस तपस्या से प्रभावित भगवान विष्णु ने विवाह के लिए पार्वती का हाथ हिमालय से माँगा. हिमालय ने बड़े प्रसन्न होकर ये बात पार्वती को बताई. जिसके कारण पार्वती दुखी हो गई और उन्होंने अपना दुःख अपनी सहेलियों को बताया. इस समस्या के उपाय के लिए उनकी सहेलिया उनको हर कर मतलब भगाकर वन में ले गयी. वन में पार्वती ने छुपकर भगवन शिव की तपस्या की जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और पति के रूप में मिलने का आशीर्वाद दिया. यहाँ हिमालय ने पार्वती को बहुत खोजा लेकिन पार्वती बहुत वक्त बाद पार्वती मिली. हिमालय इस सभी के बारे में पूछा तो पार्वती ने अपना दुख और दिल की बात बताई. पुत्री की इसी इच्छा को पूरी करने के लिए हिमालय ने पार्वती का शिवजी से विवाह तय किया.
हरितालिका तीज का महत्व
हरितालिका तीज का त्यौहार महिलाओ में बहुत पवित्र मन जाता है. काम उम्र की लडकिया अपने अच्छे विवाह और पति की कामना के लिए भी इस व्रत का पालन करती है. हरतालिका व्रत में माता पार्वती, भगवान शिव शंकर , गणेश पूजा का विशेष महत्व है. यह व्रत निर्जला यानि बिना पानी पिए किया जाता है और रातभर जग कर नाचगाने के साथ करने की परंपरा है.
हरितालिका का अर्थ
हरत ( अगवा करना ) और आलिका ( सहेलिया ) , मतलब सहेलियों द्वारा अगवा करने की इस बात को हरतालिका कहा जाता है.
हरतालिका तीज व्रत के नियम
१. हरतालिका के व्रत को निर्जला यानि बिना जल ग्रहण किये किया जाता है. सम्पूर्ण दिन अगले सूर्योदय तक इसका पालन किया जाता है.
२. हरितालिका पूजन का व्रत रातभर जग के किया जाता है. रातभर जग के नाच गाना और भजन के साथ इसे मनाया जाता है
हरितालिका व्रत पूजा सामग्री
काली मिटटी या वालू , रेती
केले का पत्ते
अनेक प्रकार फूल और पत्ते बेल पात्र, धतूरे का फूल , फुलेरा चूड़ी, बिंदिया, काजल, कुमकुम,
सिंदूर,मेहंदी आदि
घी , तेल, कपूर, श्रीफल, कलश, चन्दन
गहि, शक्कर, दूध, दही, शहद