श्री गणेश अथर्वशीर्ष: गणेश अथर्वशीर्ष की महिमा और महत्व
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परिचय:
भारतीय संस्कृति में देवताओं की उपासना और प्रार्थना विशेष महत्व रखती है। यहां देवताओं की बहुत सारी प्रार्थनाओं और मंत्रों के बीच श्री गणेश अथर्वशीर्ष एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गणेश अथर्वशीर्ष गणेश भगवान की महिमा और गुणों का विस्तृत वर्णन करता है। यह प्राचीन पाठ गणपति उपासना का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह पाठ उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने और उनकी कृपा को प्राप्त करने का एक मार्ग प्रदान करता है।
गणेश अथर्वशीर्ष का अर्थ और महत्व:
गणेश अथर्वशीर्ष का नाम दो भागों से मिलकर बना है - 'गणेश' और 'अथर्वशीर्ष'। यह नाम विद्यमान पाठ की प्राचीनता और महत्व को दर्शाता है। 'गणेश' शब्द का अर्थ होता है 'विघ्नहर्ता' और 'अथर्वशीर्ष' शब्द का अर्थ होता है 'अत्यंत महत्त्वपूर्ण वचन'। इस प्रकार, गणेश अथर्वशीर्ष गणेश भगवान के महत्वपूर्ण वचनों का संग्रह है, जो उनके भक्तों को आशीर्वाद और सम्पूर्णता प्रदान करते हैं।
वेदों के प्रमुख मान्यताओं के अनुसार, गणेश भगवान संपूर्ण ब्रह्माण्ड के सर्वशक्तिमान देवता हैं। उन्हें विद्या, बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, विजय, सुख और संपत्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। गणेश अथर्वशीर्ष में उनकी विभिन्न गुणों का वर्णन किया गया है जो उनके भक्तों को सौभाग्य, सुख, समृद्धि और सम्पूर्णता की प्राप्ति में सहायता करते हैं। इस पाठ का पाठ और जाप गणेश भगवान की कृपा को आमंत्रित करता है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है।
गणेश अथर्वशीर्ष के लाभ:
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इस पाठ के लाभ को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:
1. विघ्ननाशक: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ से व्यक्ति के जीवन में आने वाले बाधाएं और विघ्नों का नाश होता है। यह भगवान गणेश की कृपा से विपत्तियों और समस्याओं को दूर करने में सहायता करता है।
2. ज्ञान प्राप्ति: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। यह भगवान के द्वारा प्रदान किए गए गुणों के प्रकाशन से व्यक्ति में ज्ञान का उदय होता है और उसे सही मार्ग पर ले जाता है।
3. सौभाग्य और समृद्धि: गणेश भगवान के पाठ से व्यक्ति को सौभाग्य, समृद्धि, सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। यह भगवान की कृपा से व्यक्ति को समृद्ध और सफल जीवन प्रदान करता है।
4. आत्मविश्वास और सफलता: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और वह सफलता की ओर अग्रसर होता है। यह पाठ व्यक्ति को अपार संभावनाएं और मुक्ति के मार्ग का प्रदान करता है।
5. मनोवैज्ञानिक लाभ: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ से मानसिक और भावनात्मक स्थिति में सुधार होता है। यह पाठ मन को शांति, स्थिरता और संतुलन की ओर ले जाता है और चिंता, आशंका और स्थानिक उपेक्षा को दूर करता है।
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने की विधि:
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:
1. ध्यान स्थापित करें: पहले से तैयार की गई एक शांतिपूर्ण और स्थिर स्थान पर बैठें। एक दीपक जलाएं और उसे गणेश भगवान की ओर प्रदीप्त करें। इससे आपका ध्यान संचित होगा और आपको ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलेगी।
2. शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ को शुद्धता और स्पष्टता के साथ उच्चारण करें। मानसिक शांति बनाए रखें और हर शब्द को स्पष्ट रूप से बोलें।
3. नियमित पाठ: गणेश अथर्वशीर्ष को नियमित रूप से पाठ करने की सलाह दी जाती है। बेहतर होगा कि आप इसे नियमितता के साथ रोजाना पाठ करें और स्थानांतरित न करें। इससे गणेश भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होंगे।
4. श्रद्धा और आदर्श: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ में श्रद्धा और आदर्श का विशेष महत्त्व है। इसे पाठ करते समय आपको गणेश भगवान के प्रति पूर्णता से समर्पित रहना चाहिए और उनके गुणों और महिमा को समझने का प्रयास करना चाहिए।
5. प्रभावित बनें: गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ के द्वारा प्रभावित होने के लिए आपको उसकी प्राचीनता, महिमा और गुणों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। यह पाठ आपको सम्पूर्णता, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति के लिए आपकी भावनाओं और विचारोंको प्रभावित करेगा।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष।।(ganpati atharvashirsh)गणेश अथर्वशीर्ष( ganesh atharvshirsh)
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्।।16।।
अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।
मंत्र
ॐ सहनाव वतु सहनो भुनक्तु सहवीर्यंकरवावहे तेजस्वी नावधितमस्तु मा विद्विषामहे।।
सारांश:
गणेश अथर्वशीर्ष एक महत्वपूर्ण प्राचीन पाठ है जो गणेश भगवान की महिमा और गुणों का विस्तृत वर्णन करता है। इस पाठ का पाठ करने से व्यक्ति को विघ्ननाशक, ज्ञान प्राप्ति, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, स्थिरता और संपूर्णता प्राप्त होती है। यदि हम इसे श्रद्धा और आदर्श के साथ पाठ करें, तो यह हमें गणेश भगवान के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रभावित करेगा। इसलिए, गणेश अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करके हम अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सम्पूर्णता की प्राप्ति कर सकते हैं।