जानिए क्या होता है वट सावित्री पोर्णिमा ( वट पुर्णिमा) का व्रत और कैसे करे इस व्रत को, पूजा कैसे करे
वटपौर्णिमा: विस्तृत जानकारी, महत्व और रीति-रिवाज
Vatpournima details , importance and procedures
vatsavitri pournima
भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का अपार महत्व है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम को अद्यतित और जीवंत रखने का एक माध्यम है। भारत में अनेक प्रकार के व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जो विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय आधारों पर आयोजित किए जाते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण व्रत है "वटपौर्णिमा" जो भारत के कुछ हिस्सों में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस लेख में, हम वटपौर्णिमा के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे, इसके महत्व को समझेंगे और इसकी रीति-रिवाज पर चर्चा करेंगे।
वटपौर्णिमा का त्योहार ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा दिवस को मनाया जाता है, जो हिन्दू पंचांग के अनुसार मई या जून के महीनों के मिलने पर पड़ता है। इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं, जिससे उनके पति के
लंबे जीवन और कल्याण की कामना की जाती है। यह त्योहार सावित्री देवी के नाम पर रखा गया है, जो हिन्दू पौराणिक कथाओं में अपने पति सत्यवान के प्रति अपार समर्पण और भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस दिन, महिलाएं वट वृक्ष के तने के चारों ओर धागे बांधती हैं, जो उनके पतियों के प्रति उनकी समर्पणा की प्रतीक्षा करते हैं और उनके समृद्धि की कामना करते हैं। वे रीति-रिवाज करती हैं, पूजा करती हैं और सावित्री की कथा सुनती हैं, जिससे उनकी गुणों की महिमा को याद किया जाता है और उनकी कृपा की प्राप्ति की विनती की जाती है।
वटपौर्णिमा पश्चिमी और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में प्रमुखतः महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु में मनाया जाता है। यहां त्योहार की रीति-रिवाज में थोड़ी भिन्नता हो सकती है, लेकिन त्योहार की मूलभूत भावना समान रहती है।
वटपौर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जो समाज को वैवाहिक संबंधों की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है और स्त्रियों की समर्पणा और पतिव्रता का महत्त्व प्रकट करता है। इसके अलावा, यह धार्मिक आयाम के साथ-साथ प्रकृति के प्रति भी संवेदनशीलता और संबंध को दर्शाता है। यह एक साथीत्व के अद्यतित और शक्तिशाली प्रतीक है जो परिवार को एकजुट और संगठित रखता है।
वटपौर्णिमा एक आनंददायक और पवित्र त्योहार है जो महिलाओं को उनके पतियों के साथ उनके प्यार, समर्पण और सद्भावना की महत्ता को याद दिलाता है। यह एक संतुष्ट, समृद्ध और परम धार्मिक उत्सव है जो महिलाओं को शक्ति, सौभाग्य और समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्रदान करता है।
वटपौर्णिमा की पूजा करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
1. पूजा सामग्री की तैयारी: शुरूआत में पूजा के लिए सामग्री की तैयारी करें। इसमें थाली, दीपक, गंगाजल, रोली, चावल, अक्षत (चावल के धारों के साथ), धूप, इलायची, गुड़, फूल, मिठाई और पूजा के लिए आवश्यक सामग्री शामिल हो सकती हैं।
2. निर्धारित समय पर पूजा का आयोजन करें: वटपौर्णिमा के दिन निर्धारित समय पर पूजा का आयोजन करें। यह सामान्य रूप से सुबह या दोपहर के समय होता है।
3. पूजा का आरंभ: पूजा का आरंभ व्रत कथा का पाठ करके करें। सावित्री देवी की कथा का पाठ करने से पूजा का महत्त्व और अर्थ समझ में आता है।
4. वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष की पूजा करने के लिए एक पात्र में गंगाजल लें और उसे पूजा स्थल पर स्थापित करें। उस पर रोली, अक्षत, धूप, इलायची, गुड़ और फूल रखें। फिर वट वृक्ष को धागों से बांधें और उसे पूजा करें।
5. प्रार्थना और आरती: वट वृक्ष की पूजा के बाद, सावित्री देवी की प्रार्थना करें। उसके बाद व्रत के नियमों के अनुसार पूजा करें और फूलों की माला और धूप के साथ आरती करें।
6. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद मिठाई, फल या दूध प्रसाद के रूप में वितरित करें। आप भोजन के रूप में भी प्रसाद वितरित कर सकते हैं।
यहीं तक आप वटपौर्णिमा की पूजा कर सकते हैं। ध्यान दें कि यह एक सामान्य विधि है और आप अपने परिवार के धार्मिक आदर्शों और परंपराओं के अनुसार इसे अनुकूलित कर सकते हैं।