श्री हनुमान चालिसा हिंदी Hanuman ji chalisa lyrics hindi
Hanuman ji chalisa
Table of content
1. प्रस्तावना
2. हनुमान चालीसा - एक परिचय
3. हनुमान चालीसा का महात्म्य
4. हनुमान चालीसा के लाभ
5. पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
6. उत्तर
7. अंतिम विचार
Introduction
हनुमान चालीसा एक प्राचीन भारतीय स्क्रिप्ट है जिसे श्री तुलसीदास जी ने रचा है। इस चालीसा का पाठ हर दिन किया जाता है और इसका महात्म्य भी बहुत है। यह लेख हनुमान चालीसा के महत्व, लाभ, और पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देकर इसे अधिक विस्तार से व्याख्यान करेगा।
हनुमान चालीसा - एक परिचय
हिन्दू धर्म में हनुमान जी को प्राणीश्वर के द्वारपाल के रूप में माना जाता है। उन्हें श्री रामचंद्र जी की भक्ति, त्यज्य मृत्यु और मंगलकारी सेवाओं के लिए प्रसिद्ध किया जाता है। हनुमान चालीसा उन दिव्य गुणों का संग्रह है जिनसे हनुमान जी को समर्पित व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चालीसा में कुल 40 चौपाईयां हैं जिन्हें अच्छी भावना और श्रद्धा के साथ पाठ करने से कष्टों का नाश होता है और धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
हनुमान चालीसा का महात्म्य
हनुमान चालीसा का पाठ करने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं। पहले से ही ज्ञात है कि हनुमान जी की कृपा से ध्यान को स्थिर और संयमित किया जा सकता है, यहां तक कि मृत्यु के वश में आने वाले प्राणी को भी वहां से मोक्ष प्राप्त हो सकता है। हनुमान चालीसा के पाठ से शットिजलाजी (शनि) के द्वारा दिए गए किसी भी प्रकार के कष्ट या बाधाओं का शामिलातुल्य फल प्राप्त होता है।
हनुमान चालीसा के लाभ
1. कष्टों का नाश: हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी कष्ट और परेशानियां दूर हो जाती हैं। यह चालीसा बाधाओं और अकस्मात आपदाओं के नाश के लिए बहुत प्रभावी मानी जाती है।
2. आर्थिक समृद्धि: हनुमान चालीसा पाठ करने से धन प्राप्ति, आर्थिक समृद्धि और व्यापार में वृद्धि होती है। भगवान हनुमान धन प्राप्ति के अवसर प्रदान करते हैं और अच्छे भाग्य का उद्योग करते हैं।
3. शारीरिक स्वास्थ्य: हनुमान चालीसा के पाठ से शरीर के रोगों का नाश होता है। यह चालीसा रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और शारीरिक कष्टों को दूर करने में सहायता करती है।
4. ग्रह दोष: हनुमान चालीसा का पाठ करने से ग्रह दोषों का नाश होता है और ग्रहों की दशा में सुधार होता है।
5. भक्ति में स्थिरता: हनुमान चालीसा के पाठ से भक्ति में स्थिरता और मन की शुद्धता होती है। यह चालीसा चित्त को प्रशांत और स्थिर करके उच्च स्प्रिट्युअलिटी की ओर ध्यान निर्देशित करती है।
पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. क्या हनुमान चालीसा के पाठ से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं?
2. हनुमान चालीसा का प्रतिदिन नियमित पाठ कैसे किया जाए?
3. किसी भी भाषा में हनुमान चालीसा के पाठ की विधि या कोई विशेष बात हैं?
4. क्या हनुमान चालीसा के 40 श्लोकों के अलावा और कोई चौपाई या अनुप्राश इसका हिस्सा हैं?
5. हनुमान चालीसा अवश्य ही वैदिक संस्कृत में ही पढ़ना चाहिए?
उत्तर
1. हनुमान चालीसा का पाठ करने से बहुत सारे कष्ट दूर हो सकते हैं, हालांकि इसमें बिना किसी क्रांतिक के कोई चमत्कार नहीं हो सकता है। श्रद्धा और निःस्वार्थ भाव से इसका पाठ करने पर अत्युच्च फल प्राप्त होता है।
2. हनुमान चालीसा का प्रतिदिन नियमित पाठ करने के लिए सबसे अच्छा समय सुबह-सुबह होता है। इसे एक स्थिर और शुद्ध स्थान चुनकर पूरे मन और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।
3. हनुमान चालीसा को वैदिक संस्कृत भाषा में अधिपूर्णता के साथ पढ़ा जाता है, लेकिन अगर आपको संस्कृत नहीं आती है तो आप इसे हिंदी या किसी अन्य भाषा में पढ़ सकते हैं। श्रद्धा और भावनाओं का महत्व अधिक होता है।
4. हां, हनुमान चालीसा के अलावा इसमें कुछ और चौपाईयां और अनुप्राश शामिल हैं। यह चालीसा के पाठ के अंत में शामिल होते हैं।
5. हनुमान चालीसा को किसी भाषा में पढ़ सकते हैं। ज्यादातर लोगों को संस्कृत नहीं आती है, इसलिए वे यह चालीसा हिन्दी भाषा में पढ़ते हैं। भारतीय साहित्य में यह सवाल पश्चिमीकरण के दौरान उठा था, लेकिन सही उत्तर यह है कि भाषा के न केवल भक्ति में बल्कि भक्त के मन की भावना की प्रगठना में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
अंतिम विचार
हनुमान चालीसा भक्ति और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसके पाठ से अनेक लोगों ने अपने जीवन को सकारात्मकता, संतुलन और समृद्धि की ओर मोड़ा है। हनुमान चालीसा विश्वास की शक्ति को प्रगट करती है और संदेह के समय मन को तरोताजा बना देती है। यह एक प्रतिभासम्पन्न और अद्वितीय साहित्यिक कृति है जिसकी सहायता से हम अपनी अंतर्दृष्टि को उन्नत कर सकते हैं और नए ऊँचाईयों को प्राप्त कर सकते हैं।
‖दोहा ‖
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥
‖चौपाई ‖
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥२
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥४
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे।
कांधे मूंज जनेउ साजे॥५
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥६
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सवारे॥१०
लाय सँजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥११
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोविद कहि सके कहां ते॥१५
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥१७
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लिल्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥१९
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना॥२२
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक ते कांपै॥२३
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥२४
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ २६
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥२७
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता॥३१
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३
अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥३४
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥३५
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई॥३८
जो यह पढ़ैं हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०
‖दोहा ‖
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥